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Rituals of a Happy Soul - Book Summary in Hindi : खुशी कोई संयोग नहीं, बल्कि एक आदत है

"Rituals of a Happy Soul"ये नाम ही अपने आप में सुकून देने वाला है। खुशी और शांति भला किसे नहीं चाहिए? और जब कोई किताब इन अनमोल चीज़ों को पाने के लिए कुछ सीधे-सादे 'अनुष्ठानों' की बात करती है, तो जिज्ञासा होना स्वाभाविक है।


आज हम इसी कमाल की किताब, "Rituals of a Happy Soul" के बारे में गहराई से बात करेंगे। इसका सारांश जानेंगे, हिंदी में, बिल्कुल सरल और आसान भाषा में। मेरा मक़सद सिर्फ़ आपको किताब के बारे में बताना नहीं है, बल्कि इसके सार को इस तरह समझाना है कि आप इसे अपने जीवन में उतार सकें और सचमुच एक खुशहाल आत्मा बनने की ओर कदम बढ़ा सकें।


तो, तैयार हो जाइए एक ऐसी यात्रा के लिए जो आपके अंदर ही खुशियों का खज़ाना ढूंढने में आपकी मदद करेगी।


Rituals of a Happy Soul Book Summary in Hindi : खुशी कोई संयोग नहीं, बल्कि एक आदत है

खुशहाल आत्मा के अनुष्ठान: इस किताब का सारांश हिंदी में | Rituals of a Happy Soul - Book Summary in Hindi


क्या आप भी खुशी की तलाश में हैं? एक ऐसी खुशी जो बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर न हो, बल्कि आपके अंदर से आए?


अगर आपका जवाब 'हाँ' है, तो आप अकेले नहीं हैं। इस तेज़ रफ़्तार दुनिया में, जहाँ हर कोई भाग रहा है, असली सुकून और संतोष ढूंढना एक चुनौती बन गया है। हम अक्सर सोचते हैं कि जब हमें फलाना चीज़ मिल जाएगी, या फलाने मुकाम पर पहुँच जाएंगे, तब हमें खुशी मिलेगी। लेकिन क्या ऐसा सच में होता है? या फिर खुशी कुछ और है, कुछ ऐसा जो हमारे पास हमेशा से था, बस हमने उसे देखना बंद कर दिया है?


"Rituals of a Happy Soul" किताब इसी सवाल का जवाब देती है। यह कोई जादू की छड़ी नहीं देती, बल्कि कुछ ऐसे शक्तिशाली 'अनुष्ठानों' (rituals) के बारे में बताती है जिन्हें अपनाकर हम अपने भीतर खुशी, शांति और संतोष की भावना को पोषित कर सकते हैं। ये अनुष्ठान कोई मुश्किल पूजा-पाठ नहीं हैं, बल्कि हमारे रोज़मर्रा के जीवन का हिस्सा बन सकने वाली सरल और प्रभावी आदतें हैं।


लेखक हमें समझाते हैं कि खुशी कोई मंज़िल नहीं है, बल्कि एक यात्रा है। और इस यात्रा को सुखद बनाने के लिए हमें सचेत प्रयास करने होते हैं। ये 'अनुष्ठान' ही वो प्रयास हैं जो हमारी आत्मा को पोषित करते हैं।


आइए, इस किताब के मुख्य बिंदुओं और उन महत्वपूर्ण अनुष्ठानों को विस्तार से जानते हैं:


किताब का मूल विचार: खुशी कोई संयोग नहीं, बल्कि एक आदत है


किताब का सबसे पहला और गहरा संदेश यही है कि खुशी कोई ऐसी चीज़ नहीं जो अचानक हम पर बरस जाए। यह हमारे सोचने के तरीके, महसूस करने के तरीके और काम करने के तरीके का परिणाम है। जिस तरह हम सुबह उठकर ब्रश करना या नहाना अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लेते हैं, उसी तरह हमें खुशी और मानसिक शांति को भी अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना होगा। और ये 'अनुष्ठान' हमें ऐसा करने में मदद करते हैं।


ये अनुष्ठान हमें सिखाते हैं कि कैसे हम नकारात्मकता से बचें, वर्तमान में जिएं, अपने रिश्तों को बेहतर बनाएं और सबसे महत्वपूर्ण, खुद से प्यार करें।



खुशहाल आत्मा के प्रमुख अनुष्ठान (Key Rituals of a Happy Soul):


किताब में कई अनुष्ठानों का ज़िक्र है, लेकिन कुछ ऐसे हैं जो केंद्र में हैं और सबसे ज़्यादा परिवर्तनकारी माने जाते हैं। आइए इन्हें विस्तार से समझते हैं:


1. जागरूकता का अनुष्ठान (The Ritual of Mindfulness): पल में जीना

यह शायद सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है। जागरूकता का मतलब है बिना किसी निर्णय के वर्तमान क्षण में पूरी तरह से मौजूद रहना। अक्सर हमारा मन या तो अतीत की चिंताओं में खोया रहता है या भविष्य की योजनाओं और आशंकाओं में उलझा रहता है। इस चक्कर में हम अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण पल - यानी वर्तमान पल - को खो देते हैं।


  • क्यों ज़रूरी है? जब हम जागरूक होते हैं, तो हम अपने विचारों, भावनाओं और आसपास की दुनिया को ज़्यादा स्पष्ट रूप से देख पाते हैं। यह हमें तनाव और चिंता को कम करने में मदद करता है, क्योंकि हम उन चीज़ों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो अभी हो रही हैं, न कि उन पर जो हो चुका है या होने वाला है। यह हमें जीवन की छोटी-छोटी खुशियों का अनुभव करने की क्षमता देता है, जिन्हें हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं।

  • अभ्यास कैसे करें?
    • साँस लेने पर ध्यान दें: दिन में कुछ मिनट निकालकर आराम से बैठें और सिर्फ़ अपनी साँसों पर ध्यान दें। साँस के अंदर जाने और बाहर आने को महसूस करें। जब मन भटके तो धीरे से ध्यान वापस साँसों पर ले आएं।
    • रोज़मर्रा के कामों में जागरूकता: खाते समय सिर्फ़ खाने पर ध्यान दें, उसके स्वाद, सुगंध और बनावट को महसूस करें। चलते समय अपने पैरों को महसूस करें, अपने आसपास की आवाज़ों को सुनें।
    • बॉडी स्कैन मेडिटेशन: लेटकर या बैठकर, शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर ध्यान ले जाएं, सिर से लेकर पैर तक, उनमें होने वाली किसी भी सनसनी (sensation) को महसूस करें।

यह अनुष्ठान हमें सिखाता है कि जीवन यहीं, इसी पल में है।


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2. कृतज्ञता का अनुष्ठान (The Ritual of Gratitude): जो है, उसके लिए आभारी होना

यह एक अविश्वसनीय रूप से शक्तिशाली अनुष्ठान है। कृतज्ञता का मतलब है हमारे जीवन में जो कुछ भी अच्छा है - छोटी से छोटी चीज़ से लेकर बड़ी से बड़ी चीज़ तक - उसके लिए धन्यवाद महसूस करना। अक्सर हम उन चीज़ों पर ज़्यादा ध्यान देते हैं जो हमारे पास नहीं हैं, बजाय इसके कि जो हमारे पास है उसकी कद्र करें।


  • क्यों ज़रूरी है? कृतज्ञता का अभ्यास करने से हमारा ध्यान अभाव (lack) से हटकर प्रचुरता (abundance) पर जाता है। यह हमारी मानसिकता को सकारात्मक बनाता है, तनाव कम करता है और हमें ज़्यादा खुश महसूस कराता है। यह हमारे रिश्तों को भी मज़बूत करता है, जब हम दूसरों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।

  • अभ्यास कैसे करें?
    • कृतज्ञता जर्नल: हर दिन 3-5 ऐसी चीज़ें लिखें जिनके लिए आप आभारी हैं। ये कुछ भी हो सकता है - सुबह की चाय, दोस्त की मदद, या सिर्फ़ आज का दिन देखने का मौका।
    • कृतज्ञता की भावना व्यक्त करें: जिन लोगों के लिए आप आभारी हैं, उन्हें बताएं। एक छोटा सा 'धन्यवाद' भी बहुत बड़ा बदलाव ला सकता है।
    • हर चुनौती में कुछ अच्छा ढूंढें: मुश्किल समय में भी, कुछ ऐसा ढूंढने की कोशिश करें जिससे आपने सीखा हो या जो आपको मज़बूत बनाता हो।

कृतज्ञता का अनुष्ठान हमें सिखाता है कि खुश रहने के लिए हमें सब कुछ परफेक्ट होने का इंतज़ार नहीं करना चाहिए, बल्कि जो हमारे पास है उसमें ही खुशी ढूंढनी चाहिए।


3. आत्म-करुणा का अनुष्ठान (The Ritual of Self-Compassion): खुद के प्रति दयालु होना

यह अनुष्ठान शायद सबसे मुश्किल लेकिन सबसे महत्वपूर्ण हो सकता है। हम अक्सर दूसरों के प्रति बहुत दयालु होते हैं, लेकिन जब अपनी बात आती है तो हम अपने सबसे बड़े आलोचक बन जाते हैं। आत्म-करुणा का मतलब है अपनी गलतियों, कमज़ोरियों और असफलताओं के बावजूद खुद को उसी तरह स्वीकार करना और प्यार करना जैसे हम किसी प्रिय मित्र को करते हैं।


  • क्यों ज़रूरी है? जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। हम सब गलतियाँ करते हैं और असफल होते हैं। जब हम खुद के प्रति कठोर होते हैं, तो यह हमारे आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचाता है और हमें नकारात्मकता के भंवर में धकेल देता है। आत्म-करुणा हमें इन अनुभवों से ज़्यादा लचीलेपन (resilience) के साथ निपटने की शक्ति देती है। यह हमें यह समझने में मदद करती है कि अपूर्ण होना मानव स्वभाव का हिस्सा है।

  • अभ्यास कैसे करें?
    • अपने आप से एक दोस्त की तरह बात करें: जब आप खुद को निराश या आलोचना करते हुए पाएं, तो रुकें और सोचें कि अगर आपका कोई दोस्त ऐसी स्थिति में होता, तो आप उससे क्या कहते? वही बात खुद से कहें।
    • अपनी भावनाओं को स्वीकार करें: मुश्किल भावनाओं (जैसे दुख, निराशा, गुस्सा) को दबाने के बजाय उन्हें स्वीकार करें। समझें कि भावनाएं अस्थायी होती हैं।
    • माइंडफुलनेस का उपयोग करें: अपनी भावनाओं और विचारों को बिना किसी निर्णय के देखें।

आत्म-करुणा का अनुष्ठान हमें सिखाता है कि खुशी बाहर नहीं, बल्कि हमारे अपने अंदरूनी रिश्ते में निहित है - खास तौर पर उस रिश्ते में जो हमारा खुद के साथ है।


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4. छोड़ देने का अनुष्ठान (The Ritual of Letting Go): बोझ हल्का करना

हम अक्सर पुरानी बातों, शिकायतों, पछतावों और उन चीज़ों को पकड़े रहते हैं जिन पर हमारा नियंत्रण नहीं होता। यह बोझ हमें मानसिक और भावनात्मक रूप से थका देता है। छोड़ देने का अनुष्ठान हमें सिखाता है कि कैसे हम इस अनावश्यक बोझ को उतार फेंकें।


  • क्यों ज़रूरी है? बीती हुई बातों को पकड़े रहने से हम वर्तमान में खुश नहीं रह पाते। गुस्सा और निराशा हमें अंदर ही अंदर खा जाती है। जो चीज़ें हमारे नियंत्रण में नहीं हैं उनके बारे में चिंता करने से केवल तनाव बढ़ता है। जब हम छोड़ना सीखते हैं, तो हम हल्का महसूस करते हैं, हमारे पास वर्तमान के लिए ज़्यादा ऊर्जा होती है, और हम नई संभावनाओं के लिए खुद को खोलते हैं।

  • अभ्यास कैसे करें?
    • पहचानें कि आप क्या पकड़े हुए हैं: उन लोगों, स्थितियों या विचारों की पहचान करें जिन्हें आप जाने नहीं दे पा रहे हैं।
    • स्वीकृति का अभ्यास करें: स्वीकार करें कि जो हुआ वो हुआ, और आप उसे बदल नहीं सकते। जो चीज़ें आपके नियंत्रण में नहीं हैं उन्हें स्वीकार करें।
    • क्षमा करें: दूसरों को और खुद को भी क्षमा करें। क्षमा का मतलब यह नहीं कि आप जो हुआ उसे सही ठहरा रहे हैं, बल्कि यह है कि आप उस घटना से जुड़ी नकारात्मक भावनाओं से खुद को आज़ाद कर रहे हैं।
    • नियंत्रण छोड़ने का अभ्यास करें: समझें कि आप हर चीज़ को नियंत्रित नहीं कर सकते। कुछ चीज़ों को उनके हाल पर छोड़ना सीखना ज़रूरी है।

छोड़ देने का अनुष्ठान हमें आज़ादी का एहसास कराता है - उस बोझ से आज़ादी जो हमें नीचे खींच रहा था।


5. सेवा का अनुष्ठान (The Ritual of Service): दूसरों के लिए कुछ करना

खुशी अक्सर खुद से परे देखने में मिलती है। जब हम दूसरों की मदद करते हैं, तो हमें एक गहरा संतोष और जुड़ाव महसूस होता है। सेवा का अनुष्ठान हमें सिखाता है कि कैसे दूसरों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाकर हम अपने जीवन को अर्थपूर्ण बना सकते हैं।


  • क्यों ज़रूरी है? जब हम दूसरों की मदद करते हैं, तो हमारा ध्यान अपनी समस्याओं से हटकर दूसरों की ज़रूरतों पर जाता है। यह हमें एक व्यापक दृष्टिकोण देता है। सेवा करने से हमें अपनेपन और समुदाय की भावना महसूस होती है। अध्ययनों से पता चला है कि जो लोग नियमित रूप से दूसरों की मदद करते हैं, वे ज़्यादा खुश और स्वस्थ रहते हैं।

  • अभ्यास कैसे करें?
    • छोटे कदम उठाएं: किसी दोस्त की बात सुनें, किसी पड़ोसी की मदद करें, या किसी अजनबी के लिए दरवाज़ा खोलें।
    • स्वयंसेवा करें: किसी ऐसे काम या संस्था से जुड़ें जो आपके दिल के करीब हो।
    • दयालुता के रैंडम एक्ट्स करें: बिना किसी उम्मीद के किसी के लिए कुछ अच्छा करें।

सेवा का अनुष्ठान हमें सिखाता है कि सच्ची खुशी अक्सर देने में मिलती है, लेने में नहीं।


6. जुड़ाव का अनुष्ठान (The Ritual of Connection): अकेले नहीं, साथ हैं

इंसान एक सामाजिक प्राणी है। हमें दूसरों से जुड़ने की ज़रूरत होती है - चाहे वे परिवार, दोस्त, या समुदाय के लोग हों। यह अनुष्ठान हमें सिखाता है कि कैसे अपने रिश्तों को मज़बूत करें और अपने आस-पास के लोगों से गहराई से जुड़ें।


  • क्यों ज़रूरी है? मज़बूत सामाजिक रिश्ते हमारी खुशी और मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद ज़रूरी हैं। अकेलापन और अलगाव दुख का एक बड़ा कारण बन सकते हैं। दूसरों से जुड़कर हमें समर्थन, प्यार और अपनेपन की भावना मिलती है।

  • अभ्यास कैसे करें?
    • अपने प्रियजनों के लिए समय निकालें: फ़ोन पर बात करें, मिलें, या बस उनके साथ समय बिताएं।
    • सक्रिय रूप से सुनें: जब कोई आपसे बात करे तो पूरी तरह ध्यान दें।
    • नये रिश्ते बनाएं: समान रुचियों वाले लोगों से जुड़ें।
    • प्रकृति से जुड़ें: बाहर समय बिताएं, पार्क में टहलें, या बागवानी करें।
    • खुद से जुड़ें: अपनी भावनाओं और ज़रूरतों को समझें।

जुड़ाव का अनुष्ठान हमें याद दिलाता है कि हम सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, और यह जुड़ाव ही हमारी शक्ति है।


7. सादगी का अनुष्ठान (The Ritual of Simplicity): जीवन को सरल बनाना

आज की दुनिया में हम अक्सर बहुत ज़्यादा चीज़ों से घिरे रहते हैं - बहुत ज़्यादा सामान, बहुत ज़्यादा जानकारी, बहुत ज़्यादा विकल्प। यह सब हमें अभिभूत और तनावग्रस्त कर सकता है। सादगी का अनुष्ठान हमें सिखाता है कि कैसे अनावश्यक चीज़ों को हटाकर जीवन को सरल बनाया जाए।


  • क्यों ज़रूरी है? जब हमारा जीवन सरल होता है, तो हमारे पास उन चीज़ों के लिए ज़्यादा समय और ऊर्जा होती है जो सचमुच मायने रखती हैं - जैसे रिश्ते, अनुभव और व्यक्तिगत विकास। कम सामान का मतलब है कम चिंता और कम अव्यवस्था। कम जानकारी का मतलब है ज़्यादा मानसिक स्पष्टता।

  • अभ्यास कैसे करें?
    • सामान कम करें (Declutter): उन चीज़ों से छुटकारा पाएं जिनकी आपको ज़रूरत नहीं है या जिनका आप उपयोग नहीं करते हैं।
    • डिजिटल डिटॉक्स: सोशल मीडिया और स्क्रीन टाइम कम करें।
    • अपनी प्राथमिकताओं को स्पष्ट करें: जानें कि आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण क्या है और उसी पर ध्यान केंद्रित करें।
    • कम खरीददारी करें: सोच समझकर खरीददारी करें, सिर्फ़ ज़रूरत की चीज़ें लें।

सादगी का अनुष्ठान हमें याद दिलाता है कि कम अक्सर ज़्यादा होता है, खासकर जब बात खुशी की हो।


8. मनन/आत्मनिरीक्षण का अनुष्ठान (The Ritual of Reflection/Introspection): भीतर झाँकना

यह अनुष्ठान हमें अपने विचारों, भावनाओं, अनुभवों और कार्यों पर गहराई से सोचने के लिए प्रेरित करता है। दिन के अंत में या हफ्ते में एक बार, कुछ समय अकेले बिताकर यह देखना कि क्या हुआ, आपने कैसा महसूस किया, और आप इससे क्या सीख सकते हैं।


  • क्यों ज़रूरी है? आत्मनिरीक्षण हमें खुद को बेहतर ढंग से समझने में मदद करता है। यह हमें अपनी गलतियों से सीखने, अपनी प्रगति को ट्रैक करने और भविष्य के लिए बेहतर निर्णय लेने की अनुमति देता है। यह हमें अपनी भावनाओं को प्रोसेस करने और मानसिक स्पष्टता प्राप्त करने में भी मदद करता है।

  • अभ्यास कैसे करें?
    • जर्नलिंग: अपने विचारों और भावनाओं को लिखें।
    • शांत समय बिताएं: बिना किसी व्यवधान के अकेले बैठें और बस सोचें।
    • सवाल पूछें: खुद से पूछें - "आज मैंने क्या सीखा?", "मुझे किस चीज़ ने खुश किया?", "मैं क्या बेहतर कर सकता था?"

मनन का अनुष्ठान हमें अपनी अंदरूनी दुनिया से जोड़ता है, जो हमारे विकास और खुशी के लिए आवश्यक है।


अनुष्ठान, आदतें और खुशी का चक्र:

यह किताब ज़ोर देती है कि ये अनुष्ठान सिर्फ़ एक बार करने वाली चीज़ें नहीं हैं। ये ऐसी आदतें हैं जिन्हें हमें रोज़ या नियमित रूप से अभ्यास में लाना होता है। जिस तरह पौधों को रोज़ पानी देने से वे फलते-फूलते हैं, उसी तरह इन अनुष्ठानों का नियमित अभ्यास हमारी आत्मा को पोषित करता है और हमें एक स्थायी खुशी की ओर ले जाता है।


शुरुआत में यह मुश्किल लग सकता है, लेकिन धीरे-धीरे ये आदतें हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन जाती हैं। और जब ये हमारी आदतें बन जाती हैं, तो खुशी और शांति हमारे जीवन का स्वाभाविक हिस्सा बन जाती हैं। यह एक सकारात्मक चक्र है: आप जितना ज़्यादा इन अनुष्ठानों का अभ्यास करते हैं, आप उतना ज़्यादा खुश महसूस करते हैं, और आप जितना ज़्यादा खुश महसूस करते हैं, आप उतना ज़्यादा इन अनुष्ठानों को करना चाहते हैं।


इस किताब का संदेश आपके लिए:

"Rituals of a Happy Soul" का मुख्य संदेश यह है कि आपके पास खुश रहने की शक्ति है, और यह शक्ति आपके अंदर ही है। आपको इसे बाहर ढूंढने की ज़रूरत नहीं है। इन सरल लेकिन शक्तिशाली अनुष्ठानों को अपनाकर, आप अपने भीतर खुशी, शांति और संतोष का एक अटूट स्रोत बना सकते हैं।

यह किताब आपको यह भी सिखाती है कि पूर्णता की तलाश न करें। हर दिन परफेक्ट नहीं होगा। कुछ दिन मुश्किल होंगे। महत्वपूर्ण यह है कि आप गिरकर भी उठें और इन अनुष्ठानों को फिर से अपनाना शुरू करें। खुद के प्रति दयालु रहें, धैर्य रखें और अपनी प्रगति का आनंद लें, चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो।


निष्कर्ष: एक खुशहाल आत्मा की ओर पहला कदम

"Rituals of a Happy Soul" सिर्फ़ एक किताब नहीं है, बल्कि एक गाइड है जो आपको एक ज़्यादा खुशहाल और अर्थपूर्ण जीवन जीने का रास्ता दिखाती है। इसमें बताए गए अनुष्ठान कोई जटिल सिद्धांत नहीं हैं, बल्कि वे व्यवहारिक कदम हैं जिन्हें कोई भी अपने जीवन में शामिल कर सकता है।


जागरूकता, कृतज्ञता, आत्म-करुणा, छोड़ देना, सेवा, जुड़ाव, सादगी और मनन - ये वो खंभे हैं जिन पर एक खुशहाल आत्मा का निर्माण होता है। इन अनुष्ठानों को अपनाकर, आप न केवल अपनी व्यक्तिगत खुशी बढ़ाएंगे, बल्कि अपने आसपास की दुनिया पर भी सकारात्मक प्रभाव डालेंगे।


तो देर किस बात की? आज ही इन अनुष्ठानों में से किसी एक को अपनाकर शुरुआत करें। देखें कि कैसे ये छोटे-छोटे कदम आपके जीवन में बड़ा बदलाव ला सकते हैं। याद रखें, खुशी एक यात्रा है, और हर अनुष्ठान उस यात्रा का एक खूबसूरत पड़ाव है।


यह किताब हमें सिखाती है कि असली जादू हमारे अंदर ही है। बस उसे पहचानने और उसका पोषण करने की ज़रूरत है, हर दिन, एक अनुष्ठान के साथ।


मुझे उम्मीद है कि "Rituals of a Happy Soul" का यह सारांश आपको पसंद आया होगा और आपको प्रेरित करेगा। इन अनुष्ठानों को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं और देखें कि कैसे आपकी आत्मा खुशियों से भर जाती है!


खुश रहें
, स्वस्थ रहें!

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Rituals of a Happy Soul Book


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