इस आर्टिकल में, हम आपको उस स्थल के बारे में जानकारी देंगे, जिसका सीधा संबंध पानीपत की तीसरी और अंतिम युद्ध से है। यदि आप आज भी वहां जाते हैं, तो आपको जमीन पर लाल रंग की खुनी मिट्टी का अनुभव होगा, जो इस युद्ध की याद दिलाती है, जो 14 जनवरी, 1761 को हुई थी।
लोग दूर-दूर से इस खास स्थल को देखने के लिए पानीपत आते हैं। इस आर्टिकल में, हम आपको इस स्थल की विशेषताओं और इसकी अद्वितीयता के बारे में विस्तार से बताएंगे।
लोग दूर-दूर से इस खास स्थल को देखने के लिए पानीपत आते हैं। इस आर्टिकल में, हम आपको इस स्थल की विशेषताओं और इसकी अद्वितीयता के बारे में विस्तार से बताएंगे।
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इस स्थल का नाम ‘काला अंब’ पानीपत के तीसरे युद्ध के समय यहां स्थित एक बड़े आम के पेड़ के कारण पड़ा। युद्ध के उपरांत, थके-हारे सैनिक इस स्थल पर आकर विश्राम करते थे। थके-हारे और चोटों से जूझते हुए सैनिक यहां आते और अपने घावों का उपचार करते थे।उनके बहते हुए रक्त के कारण, इस स्थल की मिट्टी लाल हो गई।
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पानीपत का प्रसिद्ध स्थल
‘काला अंब’, पानीपत का एक प्रमुख स्थल, दूर-दूर से आने वाले पर्यटकों का आकर्षण है। यहां ‘काला अंब’ नामक स्मारक स्थित है, जिसका नाम सुनने पर लोगों को लगता है कि यहां काले आम का एक पेड़ होगा।इस स्थल का नाम ‘काला अंब’ पानीपत के तीसरे युद्ध के समय यहां स्थित एक बड़े आम के पेड़ के कारण पड़ा। युद्ध के उपरांत, थके-हारे सैनिक इस स्थल पर आकर विश्राम करते थे। थके-हारे और चोटों से जूझते हुए सैनिक यहां आते और अपने घावों का उपचार करते थे।उनके बहते हुए रक्त के कारण, इस स्थल की मिट्टी लाल हो गई।
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आम का पेड़ बन गया काला
यह मान्यता है कि युद्ध के दौरान सैनिकों का इतना अधिक खून बहा, जिसके परिणामस्वरूप आम के पेड़ पर भी इसका प्रभाव पड़ा। सैनिकों के खून के कारण ही, पेड़ धीरे-धीरे काला हो गया, और तभी से इस स्थल को ‘काला अंब’ के नाम से पहचाना जाने लगा।रक्तरंजित आम (खूनी आम)
इस स्थल की आकर्षक विशेषता यह है कि जब आप इस पेड़ का आम काटते हैं, तो उससे निकलने वाला रस लाल रंग का होता है, जैसे खून।