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Ravan Dahan : दशहरे में रावण को जलाना, प्रभु श्री राम का ही अपमान करना है.

दशहरे में लोग रावण को जलाते हैं, क्यूंकि वो उन्हें बुराई का प्रतीक मानते हैं लेकिन जो श्री राम भक्त हैं क्या वह जानते हैं कि दशहरे में रावण को जलाना Ravan Dahan प्रभु श्री राम का ही अपमान करना है. रावण ने सीता का अपहरण किया था और जो अधर्म किया था उसकी उन्हें सजा भी मिली और वही अधर्म उनके अंत का भी कारण बना. कोई लोग यह भी सोच रहे होंगे कि रावण का आदर सन्मान किसलीये करना चाहिए? क्यूंकि हमारे शास्त्र भी कहते हैं कि अगर हम किसी की बुराइयों की आलोचना कर सकते हैं तो हमें उस व्यक्ति विशेष की अच्छाई की प्रशंसा भी करनी चाहिए, बल्कि शास्त्र नहीं प्रभु श्री राम भी यही कहते हैं. 


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Ravan Dahan : दशहरे में रावण को जलाना, प्रभु श्री राम का ही अपमान करना है


Ravan Dahan

एक लोक कथा भी प्रचलित है कि जब श्री रावण मृत्यु सैया पर लेटे होते हैं तो उस समय श्रीराम लक्ष्मण जी से कहते हैं कि बेशक रावण उनके शत्रु है लेकिन वह एक बहुत ही बड़े महाज्ञानी भी हैं और वह उन्हें आदेश देते हैं लक्ष्मण को कि वो रावण के पास मानपूर्वक आदर पूर्वक जाएं और अंतिम समय में उनसे कुछ ना कुछ ज्ञान अर्जित करें. जब श्री राम रावण में अच्छाई और बुराई दोनों देख सकते थे तो हम लोग कैसे रावण को बुराई का प्रतीक मान कर जला सकते हैं.

 

यहां पर प्रश्न भी है कि हम रावण के बारे में हम जानते भी कितना है. सिर्फ हम उतना ही जानते हैं जितना हमें टीवी में दिखाया गया है जहां पर सिर्फ राम राज्य की बात होती है, रावण राज्य के बारे में कोई भी बात नहीं करता. एक ऐसा रावण राज्य जिसमें जनता बहुत ही सुख एवं समृद्ध थी.अगर हम रावण के ज्ञान के बारे में भी बात करें तो रावण एक महान पंडित थे और वह एक बहुत ही फेमस Musician थे, दार्शनिक थे, वह एक बहुत ही फेमस शास्त्री भी थे, वह Astronomer थे. अगर हम ज्योतिष की बात करें तो ज्योतिष में रावण संहिता की रचना रावण द्वारा ही की गई थी और आज भी जब ज्योतिष में कोई भी हमारे प्रश्न फस जाते हैं या विश्लेषण नहीं कर पाते हैं तो अंतिम में रावण संहिता का ही मत लिया जाता है. यहाँ तक की जिस अधर्म के लिए रावण को जलाया जाता है उसके बारे में लोगों को सही जानकारी ही नहीं है. 

                                                

सीता को एक वरदान प्राप्त था कि अगर कोई भी उन्हें उनकी इच्छा के विरुद्ध स्पर्श करेगा वो भस्म हो जाएगा. तो क्या रावण इतने मूर्ख थे कि वह सीता को स्पर्श करते थे. जिस तरह से टीवी सीरियल्स, Movies में दिखाया जाता है ऐसा नहीं था. बल्कि जब सीता का हरण कर रहे थे तो उस समय सीता जब लक्ष्मण रेखा तोड़कर बाहर निकल जाती है तो रावण इतने शक्तिशाली थे कि वो अपनी शक्तियों के दम पर भूमि को लिफ्ट कर देते हैं और सीता रावण के पुष्पक विमान में चली आती हैं. जब सीता हरण करके लंका ले जाते हैं और अशोक वाटिका में उनका आदर पूर्वक रखा जाता है और वह अन्य जल ग्रहण करने से मना कर देती है, तो रावण इतने बड़े वैज्ञानिक थे कि वह एक केमिकल कंपोजिशन का एक दायरा क्रिएट करते हैं. वहां पर उस अशोक वाटिका में उस क्षेत्र में अगर कोई भी व्यक्तिविशेष होगा तो उसके ऊपर प्रकृति का विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा. उस व्यक्ति विशेष की जो अस्वस्थ है, वह भी असमर्थ नहीं होगा बल्कि भूख और प्यास का भी एहसास नहीं होगा. 


में इस अधर्म का समर्थन तो नहीं करता लेकिन यह जो अधर्म किया गया था वह भी एक सम्मान पूर्वक तरीके से किया गया था ,क्योंकि रावण ने अगर सीता का हरण किया भी था तो उन्होंने सीता माता को बहुत ही आदर पूर्वक सम्मान के साथ रखा था. लेकिन अगर हम आज की बात करें तो जब दशहरा होता है तो इस समय जब रावण को जलाया जाता है उसी समय कुछ एक लोक जो रावण के पुतले को जला रहे होते हैं, यह वही लोग होते हैं जो हिंसावादी होते हैं ओर इनमें से कुछ लोग जो नारी का सम्मान नहीं करते हैं और इनमें से कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जब वह नारियों को जिस तरह से दृष्टि देते हैं उन्हें वह निर्वस्त्र महसूस करवा देते हैं. हम उन 12% श्री लंका हिंदू भाइयों और हमारे भारत में भी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, आंध्र प्रदेश में कुछ हमारे जो हिंदू भाई हैं जो आज भी रावण की पूजा करते हैं. वह उन्हें गॉड तो नहीं मानते लेकिन फिर भी वह रावण को एक महान शासक और एक ट्रैजिक हीरो और एक महान पंडित और उसके साथ साथ एक उन्हें एक ऐसा बड़ा भाई मानते हैं, एक ऐसा बड़ा भाई की जो की बहन सूर्पनखा की लक्ष्मण द्वारा नाक काट दी गई थी. उन्हें यह भी मालूम था कि वह अगर श्री राम से युद्ध करेंगे तो वो उनका अंत का कारण बनेगा लेकिन अपनी बहन के सम्मान के लिए भी वह बड़े भाई होने के नाते वह युद्ध लड़ गए थे. और एक ऐसे श्री रावण जो शिव भक्त और शिव के बहुत ही प्रिय थे. 


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रावण द्वारा रचित बहुत सारे लोगों को नहीं भी पता होगा रावण द्वारा रचित शिव तांडव स्तोत्र आज भी प्रयोग में लाया जाता है. हमारे पूर्वज हमसे ज्यादा ब्रॉड माइंडेड थे क्यूंकि अगर वह रावण की बुराइयों को समझते थे, उनके बारे में व्याख्यान करते थे, तो रावण के धर्म उनके एथिक्स उनकी मोरल वैल्यूज के बारे में भी विचार करते थे. रावण द्वारा जो किताबें लिखी गई थी, उनके ऊपर उसकी उनके रिसर्च को भी आगे वह कैरी फॉरवर्ड करते थे. हमने सिर्फ टीवी में एक ऐसा सच जो कभी सच नहीं था कि रावण ने सीता मां को अपने कंधे पर उठाया और हाथ से खींचकर लेकर चले गए जो हमारे शास्त्र भी इसकी गवाही नहीं देते हैं. हम उसी को सच मान लेते हैं और लास्ट अराउंड 200 साल से एक प्रथा प्रचलित हो जाती है कि हम रावण का पुतला जलाना Ravan Dahan शुरू कर देते हैं. तो हमारे जो पूर्वज थे ऐसे नहीं थे वह हमारी तरह नहीं थे और ये जो रावण को जलने की प्रथा है यह अराउंड 200 वर्ष पहले से ही शुरू हुई है. 


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रावण की मोरल वैल्यूज की बात भी करें तो इसके पीछे भी एक स्टोरी है. कुछ लोगों ने यह स्टोरी सुनी भी होगी यह उसे समय की बात है, जब श्रीराम अपनी वानर सेना के साथ समुन्दर लाँधकर लंका किनारे शरण लेते हैं और जब यह युद्ध चल रहा होता है, रावण के साथ  इस मध्य में वो एक लंका विजय प्राप्ति करने के लिए एक यज्ञ का संचालन भी करते हैं. उसके लिए उन्हें एक महान पंडित की आवश्यकता भी पड़ती है, तो वह जाम्बुवंत जिसे निवेदन करते हैं कि वह श्रीलंका जाए एवं रावण से निवेदन करें कि वो उस यज्ञ में सम्मिलित हो और पूर्ण करवाने में अपना सहयोग भी दें. जाम्बुवंत जी श्रीलंका जाते है और जब वो रावण की सभा में पहुंचते हैं तो उस समय रावण अपने सिंहासन से उठकर जाम्बुवंत जी को दंडवत प्रणाम करते हैं. उन्हें सिंहासन पर विराजमान करवाते हैं, उनसे उनके आने का प्रयोजन भी पूछा जाता, तो उस समय जाम्बुवंत रावण को यह बताते हैं उनके प्रभु श्री राम जो की लंका किनारे लंका विजय प्राप्ति करने के लिए एक महान यज्ञ करने जा रहे हैं तो उनके लिए उन्हें एक महान पंडित की आवश्यकता है. तो श्री राम यह चाहते हैं कि रावण स्वयं आकर इस यज्ञ को संपूर्ण करें क्योंकि रावण से बड़ा ज्ञानी कोई नहीं था. उस समय पूरी दरबार में जब यह बात कहते हैं जाम्बुवंत जी तो उस समय जो उनके सभा गण थे, सभासद थे अश्वकृति दे देते हैं. लेकिन रावण इसको स्वीस्कृति दे देते हैं और रावण उस यज्ञ में भाग लेते हैं, उस यज्ञ को संपूर्ण करवाने के लिए जाते हैं. तब प्रखंड पंडित उस समय वह श्री राम से कहते हैं कि इस यज्ञ को पूर्ण करवाने के लिए उनकी पत्नी का होना आवश्यक है. श्री राम इसके लिए अपनी असमर्थता जताते हैं तो रावण उस समय हनुमान जी से निवेदन करते हैं कि वह श्रीलंका जाए और सीता माता जी को आदरपूर्वक इस यज्ञ में सम्मिलित करवाए. सीता मां उस यज्ञ में आता भी है और वह यज्ञ पूर्ण भी होता है. 


आप लोगों के बहुत सारे Questions आएंगे यहां पर कि अगर सीता को वहां से बुला लिया गया था और अगर रावण वहां पर यज्ञ करवा रहे थे, तब श्री राम ने रावण को वहां पर बंदी क्यों नहीं बना लिया गया और सीता को फिर से वापस क्यों जाने दिया गया फिर युद्ध क्यों हुआ. नहीं ये सब करना ही होता तो जब हनुमान जी जब श्रीलंका गए थे अशोक वाटिका में सीता मां से पहली मुलाकात करने तो वह पूरी की पूरी लंका को अपने हाथों से उठाकर सीता माता सहित और रावण के साथ लाकर श्री राम के सामने प्रस्तुत कर सकते थे. लेकिन हमें यह भी समझना होगा कि उन दिनों में अगर अधर्म होता भी था तो वह भी नीतिगत होता था. आज कलयुग में हम प्रवेश कर चुके हैं उस समय त्रेतायुग था, उस समय जब युद्ध भी होते थे तो जब सूर्य उदय होता था तो सूर्य उदय के साथ ही युद्ध का आगाज होता था और सूर्य अस्त के साथ ही युद्ध खत्म हो जाए करते थे, ना कि आजकल की तरह जो अभी छापामार युद्ध जो होता है जो बहुत ही प्रचलन में है और उसी को ही तवज्जो दिया जाता है. युद्ध के समय में  फर्क है आज के समय में और उस समय में.



Ravan Dahan CONCLUSION : देखिए श्री राम हीरो थे और वह हीरो ही रहेंगे लेकिन अगर हम श्री राम के आदर्शों की बात करें, तो श्री राम  रावण में भी बुराई होने के बावजूद अच्छाईयोंको को भी ढूंढते थे. अगर हम रावण की बात करें तो रावण का जो कैरक्टर था उनसे हमें बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है कि, अगर रावण जैसा एक महान शक्तिशाली राजा जो कि तीनों लोकों का सबसे बड़ा पंडित था. अगर रावण को अहंकार आ जाता है और वही अहंकार उनके अंत का कारण भी बनता है, तो हमें भी अहंकार नहीं करना चाहिए क्योंकि अगर रावण का अहंकार उनका अंत कर देता है, तो हम तो रावण के सामने कुछ भी नहीं है. और रही बात हमारी शक्तियोंकी तो हमें अपनी अच्छाई को और भी ज्यादा स्ट्रेंथ करना चाहिए हमें अपनी बुराइयों के ऊपर भी विचार करना चाहिए, और जो हमारी कमियां है हमारी उनके ऊपर भी हमें उनको ठीक करना चाहिए साथ में हमारी जो शक्तियां हैं हमें उनका संचालन पूर्ण तरीके से करना आना चाहिए. 


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