Motivational Story in Hindi
Table of Content
1) कर्म और भाग्य : जीवन के अद्भुत पहलुओं का अनवेषण!
2) ये जिन्दगी! ना मिलेगी दोबारा : जीवन की अद्वितीय यात्रा!
3) मनुष्य का प्रारब्ध : जीवन के रहस्यों का खुलासा!
4) 'Ramayan' का अनसुना अध्याय : 'इंद्रजीत' - प्रेयसी दो अंतिम बार विदा
1) कर्म और भाग्य : जीवन के अद्भुत पहलुओं का अनवेषण! (Motivational Story in Hindi)
नारद की बात सुनने के बाद प्रभु ने कहा, 'यह ठीक ही हुआ। जो चोर गाय पर पैर रखकर भाग गया था, उसकी किस्मत में तो एक खजाना था। लेकिन उसके इस पाप के कारण उसे केवल कुछ मुद्राएं ही मिलीं। वहीं, उस साधु को गड्डे में इसलिए गिरना पड़ा, क्योंकि उसके भाग्य में मृत्यु लिखी थी। गाय को बचाने के अमूल्य कार्य के फलस्वरूप, साधु के पुण्य बढ़े और उनकी मृत्यु केवल एक छोटी चोट में परिवर्तित हो गई। यह जीवन का नियम है कि व्यक्ति के कर्म ही उसके भाग्य का निर्धारण करते हैं। इसलिए, हमें सदा अच्छे कर्म करने चाहिए और किसी का भी अनिष्ट नहीं करना चाहिए।
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जीव इस संसार में चौरासी लाख योनियों में भटकता रहता है। एक योनि में जन्म अगली बार उसे किस योनि में जाना है ये इस बात पर निर्भर करता है कि इस योनि में उसने, अन्य किस योनि पर कृपा अथवा अत्याचार किया है। जिस योनि पर वह अत्याचार करता है उस योनि के कर्मों को भोगने के लिये उसे अगला जन्म उसी योनि में लेना पड़ता है। इसी प्रकार वह जलचर, थलचर और गगनचर आदि की सभी योनियाँ भोगता है। सब योनियों को भोगने के उपरांत उसे अपने द्वारा किये गये सभी पापों के प्राश्चित के लिये मानव जन्म मिलता है।
कोई भी ज्योतिष विज्ञान आपके जन्म और स्थान की गणना करके ये तो बता सकता है कि आप पिछले जन्म में किस योनि में थे, परन्तु आगे भविष्य में आप किस योनि में जायेंगे उसको ज्ञात करने का उनके पास भी कोई तरीका नहीं है। वह तो केवल इस बात पर निर्भर होता है कि आप अपने पापों का कितना प्राश्चित कर पाते हैं या और कितने नवीन पाप करते हैं। भगवान ने यह मानव जीवन अपनी गलतियों को सुधारने के लिये दिया है। इस मानव जीवन के बाद तो फैसले की घड़ी आती है।
इस मानव जीवन के बाद जीव के लिये दो रास्ते होते हैं। या तो वह इस जीवन-मरण के कुचक्र से मुक्ति पाकर मोक्ष की प्राप्ति करता है और या फिर दोबारा से इन चौरासी लाख योनियों में भटकता है। अब ये फैसला तो आपके हाथ में है कि आप कौन-सा मार्ग चुनना चाहते हैं। क्योंकि ये जिन्दगी! ना मिलेगी दोबारा'।
एक व्यक्ति ने नारदमुनि से प्रश्न किया कि मेरे भाग्य में कितनी संपत्ति है? नारदमुनि ने उत्तर दिया - मैं भगवान विष्णु से पूछकर कल आपको बताऊंगा। नारदमुनि ने उस व्यक्ति को बताया कि आपके भाग्य में प्रतिदिन 1 रुपया है। व्यक्ति अत्यंत प्रसन्न हो उठा, उसकी जरूरतें सिर्फ 1 रुपये में पूरी हो जाती थी। एक दिन, उसके दोस्त ने कहा कि उन्होंने उसके सादगी भरे जीवन और खुशी को देखकर प्रभावित होकर अपनी बहन की शादी उससे करने का निर्णय लिया है।
व्यक्ति ने कहा कि मेरी आय प्रतिदिन 1 रुपया है, इसे ध्यान में रखें। इसी से ही आपकी बहन को जीना होगा। मित्र ने कहा कि कोई बात नहीं, मुझे विवाह स्वीकार है। अगले दिन से उस व्यक्ति की आय 11 रुपये हो गई। उसने नारदमुनि से पूछा कि हे मुनिवर, मेरे भाग्य में 1 रुपया लिखा है तो फिर 11 रुपये क्यों मिल रहे हैं? नारदमुनि ने कहा- क्या आपका किसी से विवाह या सगाई हुई है? हाँ, हुई है, उसने उत्तर दिया। तो यह 10 रुपये उसके भाग्य के हैं, इसे जोड़ना शुरू करें, यह आपके विवाह में काम आएंगे - नारद जी ने उत्तर दिया।
एक दिन उसकी पत्नी गर्भवती हुई और उसकी आय 31 रुपये होने लगी। फिर उसने नारदमुनि से पूछा कि हे मुनिवर, मेरी और मेरी पत्नी के भाग्य के 11 रुपये मिल रहे थे लेकिन अभी 31 रुपये क्यों मिल रहे हैं? क्या मैं कोई अपराध कर रहा हूं या किसी त्रुटि के कारण यह हो रहा है? मुनिवर ने कहा- यह आपके बच्चे के भाग्य के 20 रुपये हैं। "हर व्यक्ति को उसका निर्धारित भाग्य प्राप्त होता है। हमें यह नहीं पता कि घर में धन-संपत्ति किसके भाग्य का परिणाम है। फिर भी, मनुष्य अहंकार में उलझ जाता है, सोचता है कि सब कुछ उसने बनाया है, उसने कमाया है, वह उसका है, वह उसकी मेहनत का परिणाम है, वह उसके काम का नतीजा है। लेकिन वास्तविकता यह है कि हमें यह नहीं पता कि हम किसके भाग्य का खा रहे हैं, इसलिए हमें कभी भी अपनी उपलब्धियों पर अहंकार नहीं करना चाहिए।"
रामायण एक ऐसा काव्य जिसने समय की सीमाओं को झुठला दिया, जिसने इस सोच को ही नकार दिया कि कहानियां समय के साथ पुरानी हो जाती है. कुछ तो ऐसा जरूर होगा इस किस्से में कि हजारों सालों तक सुनने सुनाने के बाद भी मन नहीं भरता. आज भी कहीं कोई राम का किस्सा छेड दे तो हम बच्चों की तरह घंटों तक सुनते रह जाते हैं, यह भूल के यह कहानी हम पहले भी कई बार सुन चुके हैं. वाल्मीकि से बाबा तुलसीदास तक रामायण की शैली बदल गयी लेकिन भाव नहीं बदला और यही भाव रामायण के अमरत्व का कारण है, यही भाव इस कहानी को टाइमलेस और क्लासिक बनाता है. रामायण इसलिए आज भी प्रासंगिक है क्योंकि इसके भाव में एक खास तरह की न्यूट्रैलिटी है, तटस्थता है. एक खास तरीके की ईमानदारी है. यह कहानी कभी एकतरफा नहीं सुनाई गई, एक-एक चौपाई में आपको लिखने वाली की निष्पक्षता साथ नजर आएगी और यह बहुत मुश्किल काम है कि आप अपने विलन के अंदर भी एक हीरो ढूंढने की हिम्मत दिखाइए.
quality है रामायण के पन्ने, जहां राम की मर्यादा का जी भरकर गुणगान किया गया वहीं रावण के पांडित्य का बखान करने से भी ना वाल्मीकि पीछे रहे, ना तुलसीदास. जहां सीता को सती बताया गया वही मंदोदरी की निष्ठा को भी कम नहीं आंका गया था. जहां लक्ष्मण और राम के भ्रातृप्रेम को सम्मान दिया गया वहीं कुंभकर्ण और रावण दो भाइयों के परस्पर संबंधों को भी अहमियत दी गई. लेकिन रामायण में एक चरित्र ऐसा भी है जिसके बारे में उतनी बात हुई नहीं जितनी होनी चाहिए थी. एक ऐसा हीरो जो सपोटिंग करैक्टर में खर्च हो गया वो है इंद्रजीत (मेघनाद) रावण का पुत्र और संसार का सबसे बड़ा योद्धा. यह विशेषण संसार का सबसे बड़ा योद्धा मैं में पूरी जिम्मेदारी के साथ इंद्रजीत से जोड़ रहा हूं. कौन था इंद्रजीत जो जन्म लेने पर रोया तो बादल यानि मेघों की गर्जना सुनाई दी और उसका नाम मेघनाद रख दिया गया जिसने देवराज इंद्र को हराकर स्वर्ग जीत लिया और इंद्रजीत केहलाया. जिसको स्वयं ब्रह्मा ने अविजित रहने का वरदान दिया था, जिसने राम-रावण युद्ध में लगभग पूरी वानर सेना को अकेले समाप्त कर दिया, जिसने हनुमान और लक्ष्मण जैसे महाबलियों को परास्त कर दिया. ब्रह्मांड का अकेला वीर जिसने ब्रह्मास्त्र, पशुपतास्त्र और वैश्णवा अस्त्र तीनों पर अधिकार प्राप्त कर लिया है. इतना सब कुछ होने के बावजूद मैं इंद्रजीत को हीरो नहीं कहता अगर उसके किरदार में इश्क ना होता, उसने सुलोचना से सच्चा प्यार ना किया होता. प्यार किए बिना कोई संपूर्ण कैसे हो सकता है. योद्धा वही है जो हजारों को मार गिराए लेकिन नैनो का एक तीर न सह पाए. योद्धा वही है जिसके आगे ब्रह्मांड घुटने टेक दे लेकिन वह स्वयं प्रेम के आगे हथियार फेंक दे. सुलोचना शेष नाग की पुत्री थी और इंद्रजीत से उसका विवाह खुद भगवान विष्णु ने करवाया था. इंद्रजीत लंका पति रावण का पुत्र था पूरी सृष्टि का सौंदर्य उसके कदमों में बिछावर था लेकिन वह जब तक जिया सुलोचना के सिवा उसने किसी को आंख उठाकर भी नहीं देखा. राक्षस कुल में होते हुए भी उसने देवताओं जैसे प्रतिबद्धता और वफादारी का सबूत दिया. हम राम से क्यों इतना प्रेम करते हैं क्योंकि हमें राम के गुण अचंभित कर देते हैं, एक सच्चा राम भक्त वही है जो राम के सद्गुणों से प्रेम करें और वह सद्गुण जहां भी नजर आएं वहीं सर झुका दे फिर चाहे उन गुणों को धारण करने वाला एक राक्षसी क्यों ना हो. राम इसलिए बड़े हैं कि सीता के साथ उनकी निष्ठा अटूट रही थी. यही गुण तो इंद्रजीत में भी था, सुलोचना को जीवनसंगिनी मान लिया तो जीवन के अंतिम क्षण तक प्रेम की सौगंध नहीं टूटने दी.
राम इसलिये बड़े हैं कि पिता के वचन का मान रखने के लिए उन्होंने 14 वर्षों का वनवास स्वीकार कर लिया और इंद्रजीत उसने तो पिता का मान रखने के लिए हंसते-हंसते प्राण तक दे दिए. इंद्रजीत को यह आभास था कि राम कोई साधारण मनुष्य नहीं है, वह यह भी जानता था कि सीता का हरण करके रावण ने गलत किया है और इसीलिए वह बार-बार रावण को समझाता रहा कि वह सीता को वापस लौटा दें और राम से क्षमा मांग लें, लेकिन रावण ने उसे कायर कहके उसका उपहास किया. यही वह क्षण था जब इंद्रजीत को पिता के लिए अपने समर्पण और अपने शौर्य की परीक्षा देनी थी. वह जान चुका था कि युद्ध से वह कभी जीवित वापिस नहीं लोटेगा लेकिन वह पुत्र ही क्या जो पिता की बात काट दे. याद कीजिये रामानंद सागर के रामायण का वह अंश जहां रणभूमि में जाने से पहले इंद्रजीत सुलोचना से अंतिम विदा लेता है इस प्रसंग को दादू रवींद्र जैन की लेखनी ने अविस्मरणीय बना दिया. इंद्रजीत अपनी पत्नी को प्रेयसी कहकर बुलाता है और यही एक शब्द उसके प्रेम को राम और सीता के प्रेम के बराबर लाकर खड़ा कर देता है. विवाह के इतने वर्षों बाद भी वो सुलोचना को पत्नी की तरह नहीं, 'प्रेयसी' यानि प्रेमिका की तरह प्यार करता था.
''प्रेयसी दो अंतिम बार विदा,
यह सेवक ऋणी तुम्हारा है,
तुम भी जानो मैं भी जानू यह अंतिम मिलन हमारा है,
मैं मात्र चरण से दूर चला इसका दारुण संताप मुझे,
परि यदि कर्तव्य विमुख हूँगा जीने से लगेगा पाप मुझे,
अब हार-जीत का प्रश्न नहीं जो भी होगा अच्छा होगा,
मरके ही सही पितु के आगे बेटे का प्यार सच्चा होगा,
भावुकता से कर्तव्य बड़ा कर्तव्य निभे बलिदानों से,
दीपक जलने की रीत नहीं छोड़े डर के तूफानों से,
यह निश्चय कर बढ़ चला वीर कोई उसको रोक नहीं पाया,
चुपचाप देखता रहा पिता माता का अंतर भर आया."
इंद्रजीत ने अंतिम बार रावण के चरण छुए, अंतिम बार मंदोदरी के गले लगा और अंतिम बार सुलोचना को प्रेयसी कहके बुलाया. प्रेम और बलिदान की यह कहानी इतिहास के पन्नों में कुछ अनकही सी रह गयी लेकिन आप इसे जहां तक पहुंचा सकें जरूर पहुंचाएं इस नई पीढ़ी को ये अधिकार है कि वो अपने अतीत से सीखें और उसपर गर्व करे.
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2) ये जिन्दगी! ना मिलेगी दोबारा : जीवन की अद्वितीय यात्रा! (Motivational Story in Hindi)
कोई भी ज्योतिष विज्ञान आपके जन्म और स्थान की गणना करके ये तो बता सकता है कि आप पिछले जन्म में किस योनि में थे, परन्तु आगे भविष्य में आप किस योनि में जायेंगे उसको ज्ञात करने का उनके पास भी कोई तरीका नहीं है। वह तो केवल इस बात पर निर्भर होता है कि आप अपने पापों का कितना प्राश्चित कर पाते हैं या और कितने नवीन पाप करते हैं। भगवान ने यह मानव जीवन अपनी गलतियों को सुधारने के लिये दिया है। इस मानव जीवन के बाद तो फैसले की घड़ी आती है।
इस मानव जीवन के बाद जीव के लिये दो रास्ते होते हैं। या तो वह इस जीवन-मरण के कुचक्र से मुक्ति पाकर मोक्ष की प्राप्ति करता है और या फिर दोबारा से इन चौरासी लाख योनियों में भटकता है। अब ये फैसला तो आपके हाथ में है कि आप कौन-सा मार्ग चुनना चाहते हैं। क्योंकि ये जिन्दगी! ना मिलेगी दोबारा'।
3) मनुष्य का प्रारब्ध : जीवन के रहस्यों का खुलासा! (Motivational Story in Hindi)
व्यक्ति ने कहा कि मेरी आय प्रतिदिन 1 रुपया है, इसे ध्यान में रखें। इसी से ही आपकी बहन को जीना होगा। मित्र ने कहा कि कोई बात नहीं, मुझे विवाह स्वीकार है। अगले दिन से उस व्यक्ति की आय 11 रुपये हो गई। उसने नारदमुनि से पूछा कि हे मुनिवर, मेरे भाग्य में 1 रुपया लिखा है तो फिर 11 रुपये क्यों मिल रहे हैं? नारदमुनि ने कहा- क्या आपका किसी से विवाह या सगाई हुई है? हाँ, हुई है, उसने उत्तर दिया। तो यह 10 रुपये उसके भाग्य के हैं, इसे जोड़ना शुरू करें, यह आपके विवाह में काम आएंगे - नारद जी ने उत्तर दिया।
एक दिन उसकी पत्नी गर्भवती हुई और उसकी आय 31 रुपये होने लगी। फिर उसने नारदमुनि से पूछा कि हे मुनिवर, मेरी और मेरी पत्नी के भाग्य के 11 रुपये मिल रहे थे लेकिन अभी 31 रुपये क्यों मिल रहे हैं? क्या मैं कोई अपराध कर रहा हूं या किसी त्रुटि के कारण यह हो रहा है? मुनिवर ने कहा- यह आपके बच्चे के भाग्य के 20 रुपये हैं। "हर व्यक्ति को उसका निर्धारित भाग्य प्राप्त होता है। हमें यह नहीं पता कि घर में धन-संपत्ति किसके भाग्य का परिणाम है। फिर भी, मनुष्य अहंकार में उलझ जाता है, सोचता है कि सब कुछ उसने बनाया है, उसने कमाया है, वह उसका है, वह उसकी मेहनत का परिणाम है, वह उसके काम का नतीजा है। लेकिन वास्तविकता यह है कि हमें यह नहीं पता कि हम किसके भाग्य का खा रहे हैं, इसलिए हमें कभी भी अपनी उपलब्धियों पर अहंकार नहीं करना चाहिए।"
4) 'Ramayan' का अनसुना अध्याय : 'इंद्रजीत' - प्रेयसी दो अंतिम बार विदा (Motivational Story in Hindi)
रामायण एक ऐसा काव्य जिसने समय की सीमाओं को झुठला दिया, जिसने इस सोच को ही नकार दिया कि कहानियां समय के साथ पुरानी हो जाती है. कुछ तो ऐसा जरूर होगा इस किस्से में कि हजारों सालों तक सुनने सुनाने के बाद भी मन नहीं भरता. आज भी कहीं कोई राम का किस्सा छेड दे तो हम बच्चों की तरह घंटों तक सुनते रह जाते हैं, यह भूल के यह कहानी हम पहले भी कई बार सुन चुके हैं. वाल्मीकि से बाबा तुलसीदास तक रामायण की शैली बदल गयी लेकिन भाव नहीं बदला और यही भाव रामायण के अमरत्व का कारण है, यही भाव इस कहानी को टाइमलेस और क्लासिक बनाता है. रामायण इसलिए आज भी प्रासंगिक है क्योंकि इसके भाव में एक खास तरह की न्यूट्रैलिटी है, तटस्थता है. एक खास तरीके की ईमानदारी है. यह कहानी कभी एकतरफा नहीं सुनाई गई, एक-एक चौपाई में आपको लिखने वाली की निष्पक्षता साथ नजर आएगी और यह बहुत मुश्किल काम है कि आप अपने विलन के अंदर भी एक हीरो ढूंढने की हिम्मत दिखाइए.
quality है रामायण के पन्ने, जहां राम की मर्यादा का जी भरकर गुणगान किया गया वहीं रावण के पांडित्य का बखान करने से भी ना वाल्मीकि पीछे रहे, ना तुलसीदास. जहां सीता को सती बताया गया वही मंदोदरी की निष्ठा को भी कम नहीं आंका गया था. जहां लक्ष्मण और राम के भ्रातृप्रेम को सम्मान दिया गया वहीं कुंभकर्ण और रावण दो भाइयों के परस्पर संबंधों को भी अहमियत दी गई. लेकिन रामायण में एक चरित्र ऐसा भी है जिसके बारे में उतनी बात हुई नहीं जितनी होनी चाहिए थी. एक ऐसा हीरो जो सपोटिंग करैक्टर में खर्च हो गया वो है इंद्रजीत (मेघनाद) रावण का पुत्र और संसार का सबसे बड़ा योद्धा. यह विशेषण संसार का सबसे बड़ा योद्धा मैं में पूरी जिम्मेदारी के साथ इंद्रजीत से जोड़ रहा हूं. कौन था इंद्रजीत जो जन्म लेने पर रोया तो बादल यानि मेघों की गर्जना सुनाई दी और उसका नाम मेघनाद रख दिया गया जिसने देवराज इंद्र को हराकर स्वर्ग जीत लिया और इंद्रजीत केहलाया. जिसको स्वयं ब्रह्मा ने अविजित रहने का वरदान दिया था, जिसने राम-रावण युद्ध में लगभग पूरी वानर सेना को अकेले समाप्त कर दिया, जिसने हनुमान और लक्ष्मण जैसे महाबलियों को परास्त कर दिया. ब्रह्मांड का अकेला वीर जिसने ब्रह्मास्त्र, पशुपतास्त्र और वैश्णवा अस्त्र तीनों पर अधिकार प्राप्त कर लिया है. इतना सब कुछ होने के बावजूद मैं इंद्रजीत को हीरो नहीं कहता अगर उसके किरदार में इश्क ना होता, उसने सुलोचना से सच्चा प्यार ना किया होता. प्यार किए बिना कोई संपूर्ण कैसे हो सकता है. योद्धा वही है जो हजारों को मार गिराए लेकिन नैनो का एक तीर न सह पाए. योद्धा वही है जिसके आगे ब्रह्मांड घुटने टेक दे लेकिन वह स्वयं प्रेम के आगे हथियार फेंक दे. सुलोचना शेष नाग की पुत्री थी और इंद्रजीत से उसका विवाह खुद भगवान विष्णु ने करवाया था. इंद्रजीत लंका पति रावण का पुत्र था पूरी सृष्टि का सौंदर्य उसके कदमों में बिछावर था लेकिन वह जब तक जिया सुलोचना के सिवा उसने किसी को आंख उठाकर भी नहीं देखा. राक्षस कुल में होते हुए भी उसने देवताओं जैसे प्रतिबद्धता और वफादारी का सबूत दिया. हम राम से क्यों इतना प्रेम करते हैं क्योंकि हमें राम के गुण अचंभित कर देते हैं, एक सच्चा राम भक्त वही है जो राम के सद्गुणों से प्रेम करें और वह सद्गुण जहां भी नजर आएं वहीं सर झुका दे फिर चाहे उन गुणों को धारण करने वाला एक राक्षसी क्यों ना हो. राम इसलिए बड़े हैं कि सीता के साथ उनकी निष्ठा अटूट रही थी. यही गुण तो इंद्रजीत में भी था, सुलोचना को जीवनसंगिनी मान लिया तो जीवन के अंतिम क्षण तक प्रेम की सौगंध नहीं टूटने दी.
राम इसलिये बड़े हैं कि पिता के वचन का मान रखने के लिए उन्होंने 14 वर्षों का वनवास स्वीकार कर लिया और इंद्रजीत उसने तो पिता का मान रखने के लिए हंसते-हंसते प्राण तक दे दिए. इंद्रजीत को यह आभास था कि राम कोई साधारण मनुष्य नहीं है, वह यह भी जानता था कि सीता का हरण करके रावण ने गलत किया है और इसीलिए वह बार-बार रावण को समझाता रहा कि वह सीता को वापस लौटा दें और राम से क्षमा मांग लें, लेकिन रावण ने उसे कायर कहके उसका उपहास किया. यही वह क्षण था जब इंद्रजीत को पिता के लिए अपने समर्पण और अपने शौर्य की परीक्षा देनी थी. वह जान चुका था कि युद्ध से वह कभी जीवित वापिस नहीं लोटेगा लेकिन वह पुत्र ही क्या जो पिता की बात काट दे. याद कीजिये रामानंद सागर के रामायण का वह अंश जहां रणभूमि में जाने से पहले इंद्रजीत सुलोचना से अंतिम विदा लेता है इस प्रसंग को दादू रवींद्र जैन की लेखनी ने अविस्मरणीय बना दिया. इंद्रजीत अपनी पत्नी को प्रेयसी कहकर बुलाता है और यही एक शब्द उसके प्रेम को राम और सीता के प्रेम के बराबर लाकर खड़ा कर देता है. विवाह के इतने वर्षों बाद भी वो सुलोचना को पत्नी की तरह नहीं, 'प्रेयसी' यानि प्रेमिका की तरह प्यार करता था.
''प्रेयसी दो अंतिम बार विदा,
यह सेवक ऋणी तुम्हारा है,
तुम भी जानो मैं भी जानू यह अंतिम मिलन हमारा है,
मैं मात्र चरण से दूर चला इसका दारुण संताप मुझे,
परि यदि कर्तव्य विमुख हूँगा जीने से लगेगा पाप मुझे,
अब हार-जीत का प्रश्न नहीं जो भी होगा अच्छा होगा,
मरके ही सही पितु के आगे बेटे का प्यार सच्चा होगा,
भावुकता से कर्तव्य बड़ा कर्तव्य निभे बलिदानों से,
दीपक जलने की रीत नहीं छोड़े डर के तूफानों से,
यह निश्चय कर बढ़ चला वीर कोई उसको रोक नहीं पाया,
चुपचाप देखता रहा पिता माता का अंतर भर आया."
इंद्रजीत ने अंतिम बार रावण के चरण छुए, अंतिम बार मंदोदरी के गले लगा और अंतिम बार सुलोचना को प्रेयसी कहके बुलाया. प्रेम और बलिदान की यह कहानी इतिहास के पन्नों में कुछ अनकही सी रह गयी लेकिन आप इसे जहां तक पहुंचा सकें जरूर पहुंचाएं इस नई पीढ़ी को ये अधिकार है कि वो अपने अतीत से सीखें और उसपर गर्व करे.
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